भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस की आँखों में थी गहराई बहुत / साहिल अहमद
Kavita Kosh से
उस की आँखों में थी गहराई बहुत
क्यूँ सताती है ये तन्हाई बहुत
हिज्र की सौग़ात क्या लाई बहुत
बे-तहाशा याद भी आई बहुत
पेच-ओ-ख़म जुल्फों का सारा खुल गया
रात भर आँखों में लहराई बहुत
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार
ऐ सितमगर ले ने अंगड़ाई बहुत
घर से ‘साहिल’ आ के लौटी धूप क्या
हो गई मेरी तो रूस्वाई बहुत