उस को क्या कुछ नहीं सुना आये
जिस के ख़्वाबों में गुनगुना आये
एक जुम्बिश भी ले न पाये पर
पाँव के घुँघरू झनझना आये
यूँ तो जख़्मों से था छलनी सीना
जश्न हम दर्द का मना आये
सीख पाये नहीं कोई सरगम
तार वीणा के झनझना आये
वो मिलाते नहीं नज़र लेकिन
चाहतें ले के सौगुना आये
भर के दामन है यहाँ से जाता
चाहे हो कर वो अनमना आये
राह जिस ओर ले गयी हम को
अपनी मंजिल वहीं बना आये