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उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो / शाह मुबारक 'आबरू'
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उस ज़ुल्फ़-ए-जाँ कूँ सनम की बला कहो
अफ़आ कहो सियाह कहो अज़दहा कहो
क़ातिल निगाह कूँ पूछते क्या हो कि क्या कहो
ख़ंजर कहो कटार कहो नीमचा कहो
टुक वास्ते ख़ुदा के मेरा इज्ज़ जा कहो
बे-कस कहो ग़रीब कहो ख़ाक-ए-पा कहो
आशिक़ का दर्द-ए-हाल छुपाना नहीं दुरुस्त
परघट कहो पुकार कहो बर्मला कहो
इस तेग़-ज़न नीं दिल कूँ दिया है मेरे ख़िताब
बिस्मिल कहो शहीद कहो जाँ-फ़िदा कहो
शाह-ए-नजफ़ के नाम कूँ लूँ ‘आबरू‘ सीं सीख
हादी कहो इमाम कहो रह-नुमा कहो