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उस दिन भी... / विवेक चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
नहीं रहेंगे हम
एक दिन धरती पर
उस दिन भी खिले
हमारे हिस्से की धूप
और गुनगुना जाए
देहरी पर चिड़िया आए
उस दिन भी और
हाथ से दाना चुग जाए
आँगन में उस दिन
न लेटे हों हम
पर छाँव नीम के पेड़ की
चारपाई पर झर जाए
शाम घिरे उस दिन भी
भटक कर आवारा बादल आएँ
मिट्टी को भिगा जाएँ
नहीं रहेंगे हम एक दिन
पर उस दिन भी...