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उस दिन / आलोक श्रीवास्तव-२
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तुम्हें उस दिन विदा भी न कह सका
धुंध डूबी सड़क के पार 
गरजते समुद्र की लहरों का शोर
थमा-सा लगा पल को 
वह तुम्हारी हंसी का पल था
फिर वही चट्टानों पर टूटती लहरें
धुंध में डूबी सड़क पर दूर जाता तुम्हारा चेहरा
दुख से सराबोर तुम्हारी आंखे 
कुछ दूर जाकर दुख उभर आयेगा 
तुम्हारे भी चेहरे पर 
देखो उदास न होना 
लो मैंने भी पोंछ दी 
सागर-लहरों के निनाद से 
खुद पर तारी हुई
दर्द की हर आवाज
अब सिर्फ समुद्र है 
लहरें हैं ...
सड़क है धुंध डूबी ...
	
	