भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस दिन / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस दिन
आँखें मिलते ही
आसमान नीला हो गया था
और धरती फूलवती

चार आँखों का वह जादू
तुम्हें यहाँ से कैसे भेजूं?
आओ तो दिखाऊं
वह जादू

जादू जैसे
जँबूरे के बिना नहीं चलता
वैसे बिना तुम्हारे
अकेला मैं
न आसमान
नीला कर पाता हूँ
न धरती फूलवती!