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उस दिन / हरेराम बाजपेयी 'आश'
Kavita Kosh से
उस दिन तुम्हारे रूप के प्रति
नहीं
वरन्
भोलेपन पर आसक्त हो जाना
मेरी कमजोरी थी
यानी आचरण के क्षरण हेतु
रिश्वत खोरी थी।
कि खुद को भूल
तुझमें खो गया,
मेरे मन का अक्षांश
तुम्हारे तन के देशांतर से छु गया
और तुम्हारी मुस्कराहट में मुझे
मेंका कि कुटिलता सी नजर आयी
जो आदतन मुझे नहीं भायी,
क्योंकि किस्मत से मैं
कोई विश्वामित्र नहीं था,
था तो मात्र एक मानव
जिसके समक्ष हवस का दानव
झुक गया,
और इस तरह
एक और शकुंतला का जन्म
होते होते रुक गया॥