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उस नदी को पार करके अपने शरीर को / कालिदास
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तामुत्तीर्यं ब्रज परिचितभ्रूलताविभ्रमाणां
पक्ष्मोत्क्षेपादुपरिविलसत्कृष्णशारप्रभाणाम्।
कुन्दक्षेपानुगमधुकरश्रीमुषामात्मबिम्बं
पात्रीकुर्वन्दशपुरवधूनेत्रकौतुहलनाम्।।
उस नदी को पार करके अपने शरीर को
दशपुर की स्त्रियों के नेत्रों की लालसा का
पात्र बनाते हुए आगे जाना। भौंहें चलाने में
अभ्यस्त उनके नेत्र जब बरौनी ऊपर उठती
है तब श्वेत और श्याम प्रभा के बाहर
छिटकने से ऐसे लगते हैं, मानो वायु से
हिलते हुए कुन्द पुष्पों के पीछे जानेवाले
भौंरों की शोभा उन्होंने चुरा ली हो।