उस पल की बात करते हैं / संदीप द्विवेदी
चलो आज थोडा कल की बात करते हैं
जो बिन बताये गुज़र गया उस पल की बात करते हैं ...
ये ब्रेकिंग न्यूज़ को छोड़कर पुराने अख़बार की बात करते हैं ...
एक वक्त था जब हम दौड़े चले आते थे 
उस गली में बस देखने की खातिर 
कई कई-कई चक्कर लगा आते  थे 
पर अब इतना इंतजार नही होता
उतना वकत अब अपने पास नही होता 
वो जेब में सलीके से रखा प्रेम पत्र 
वो झिझक , वो शर्म
सब बहुत याद आता है ...
चलो इस धूप में उस बारिश की बात करते हैं 
जो बिना बताये गुज़र गया उस पल की बात करते हैं 
नही मिलती अब वो रोटियां
जिसमे माँ के प्यार की खुशबु आती थी 
और आज इन लुक्सेरी गाडियों के बीच वो साईकल
जो स्कूल में मेरा रुतबा जमाती थी 
सब बहुत याद आता है  
वो हाफ पेंट, वो लप लप घडी 
सब बहुत याद आता है 
चलो आज कॉफ़ी हाउस छोड़कर  
थोड़ी देर उस नुक्कड़ की बात करते हैं 
जो बिन बताये गुज़र गया उस पल की बात करते है...
जो माँगा था वो तो सब मिल गया 
पर शायद इस फेर में मेरा बचपना छिन गया 
वो कभी न थकने वाला पल छिन गया 
वो फुर्सत छिन गई वो सब छिन गया 
वो बस में खिड़की तरफ बैठने की जिद  
वो किताबो में अख़बार वाला जिल्द 
सब बहुत याद आता है ..
	
	