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उस बेजुबाँ के सामने / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’

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उस बेजुबाँ के सामने हम बेजुबा रहे!
कितने निहाँ रहे मगर कितने अयां रहे!

आग़ोश में थे जिनके हम उनको तो देखिये,
वो पूछते हैं हमसे, हम अब तक कहाँ रहे!

ये और बात है कि हम तनहा दिखा किये,
तनहा न रह सके कभी, हम कारवाँ रहे!

साकी तेरा जवाब, न अपना जवाब है,
मीना छुआ न हमने औ’ पीरे-मुगाँ रहे!

अए गर्दिशे-अय्याम! जो देना है दुआ दे,
सीने में यूँ-ही दिल रहे, मुहँ में जुबाँ रहे!

उनकी नज़र से गिर गए ‘सिन्दूर’ क्या हुआ,
अपनी नज़र से गिर के भी, हम आसमां रहे!