उस भाषा के लिये / विपिन चौधरी
दिवंगत होने से ठीक पहले तक प्रेम,
यादों की ढेरों अस्थियां अपने पीछे छोड़ देता है
एक नदी दम तोड़ते समय
अपने सूखे हुए सीने पर
सीपियाँ, घोंघे और तड़पती हुयी मछलियों के अम्बार बिखेर जाती हैं
एक डूबा हुआ गाँव
विस्थापितों के आँसूं
दहेज़ के लिए जोड़ा गए सामान और
जीवन की तह लगा कर रखी हुयी उम्मीदों को बहा ले जाता है
एक देश की भाषा पुरानी हो
सूखते ही एक शुष्क शब्दकोष छोड़ जाती है
फिर बरसों उस भाषा के शब्द बसंत का इंतज़ार किया करते हैं
और जब मैं भावपक्ष से हक़ीक़त की ओर लौटती हूँ
तो दीमक की सभी चिरपरिचित प्रजातियां अपना काम कर गुजरती हैं
और मेरे संस्कृत प्रेम
को कबाड़ी के तराजू की भेंट होने से पहले चट कर जाती हैं
अपनी दसवीं की संस्कृत-पाठ्य पुस्तकों को
अपने से अलग करने में दुःख होता था
तब नहीं जानती थी भाषा का दुःख भी चंद बड़े दुखों में से है
मेरी आँखों में संस्कृत द्वारा उड़ेला गया विनय का जल आज भी हिलोरे ले रहा है
संस्कृत ने मुझे सबसे पहले बताया,
विद्या ददाति विनयम
और भी कई भूल चूक जो इस भाषा के ज्ञान की वजह से
जीवन की देहली पर से ही वापिस हो ली
जब सूखी नदियों में पानी औटाया जा सकता है
तब संस्कृत के शब्द दुबारा अंकुरित क्यों नहीं हो सकते?