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उस मालिक का भजन करु जै म्हारी जोट मिलावै / मेहर सिंह

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राजा अश्वपति के घर कोई सन्तान न थी। राजा देवी की खूब पूजा करता है। एक दिन देवी उसके सामने प्रकट होती है कि राजन मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूं मांगो क्या मांगते हो। इस पर राजा अश्वपति देवी के सामने सन्तान की इच्छा प्रकट करते हैं तो देवी खुश होकर वरदान के रूप में एक कन्या, सावित्री उनको दे देती है। कुछ दिनों में वह कन्या जवान हो जाती है। राजा को उसकी शादी की चिन्ता सताने लग जाती है। राजा अश्वपति उस लड़की के योग्य वर ढूंढ़ने के लिए बहुत घूमते हैं लेकिन उस लड़की योग्य वर सारे संसार में नहीं मिला। आखिरकार वह लड़की स्वयं अपनी जोड़ी का वर ढूंढ़ने निकल पड़ती है। यहां से यह किस्सा शुरू होता है-

बोलो गऊ माता की जय

सावित्री चलते चलते अपने मन में क्या विचार करती है-

अरथ जुड़ा कै चाल्य पड़ी कितै वर जोड़ी का पावै
उस मालिक का भजन करुं जै म्हारी जोट मिलावै।

अवल तै मनै इतना हो ज्यूं रात भरी में तारा
दो चीज का गुण चाहूं सूं भूखा और मूजारा
सुन्दर शान पूरे ईमान कुछ हो हर का प्यारा
मै करमाँ नै ना रोती ना मिलता करम उधारा।
उस छैले की नार बणूं जो हंस कै लाड लडावै।

इसे पति तै मेल मिलै जिहनै ऊंच नीच का डर हो
सीधी डिगरी चालणियां हाजिर नाजिर नूर हो
महल हवेली ना चाहती चाहे टूट्या-फूट्या घर हो
दुःख त्रिया नै यो हो सै जो बिन सोधी का वर हो
सारी उमर ख्वार करै इसे मूरख तैं राम बचावै।

खोटा सत्संग बाली का था सतसंग ही मैं मरग्या
खोटा सतसंग रावण का था नास कुटुम्ब का करग्या
चन्द्रमा कै स्याही लागी सत्संग का डंड भरग्या।
खोटा सतसंग करने आळा बता कुणसा पार उतरग्या
खोटे का सतसंग करे तै धर्म नष्ट हो जावै।

पड्ढण मदरसै जाया करता उमर अवस्था याणी
मुंशी जी नै डंडा मारया आख्यां में भरग्या पाणी
फेर पिता नै न्यूं सोची चाहिए हळकी कार सिखाणी
सिर बदनामी टेक लई गया सीख रागणी गाणी
मेहर सिंह इस दुनियां में आकै क्यू लुच्चा ऊत कहवा वै।