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उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता / साहिर लुधियानवी
Kavita Kosh से
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान है आँखें
हर तरह के जज़्बात का ऐलान हैं आँखें
शबनम कभी, शोला कभी, तूफ़ान है आँखें
आँखों से बड़ी कोई तराज़ू नहीं होती
तुलता है बशर जिसमें वो मीज़ान है आँखें
आँखें ही मिलाती हैं ज़माने में दिलों को
अनजान हैं हम-तुम, अगर अनजान है आँखें
लब कुछ भी कहें, उससे हक़ीक़त नहीं खुलती
इनसान के सच-झूठ की पहचान है आँखें
आँखें न झुकें तेरी किसी ग़ैर के आगे
दुनिया में बड़ी चीज़, मेरी जान है आँखें
उस मुल्क की सरहद को कोई छू नहीं सकता
जिस मुल्क की सरहद की निगेहबान है आँखें