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उस शाह-ए-नो ख़ताँ कूँ हमारा सलाम है / वली दक्कनी
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उस शाह-ए-नो ख़ताँ कूँ हमारा सलाम है
जिसके नगीन-ए-लब का दो आलम में नाम है
सरशार-ए-इन्बिसात है उस अंजुमन मिनीं
जिसकूँ ख़याल तेरी अँखाँ का मदाम है
जिस सरज़मीं में तेरी भँवाँ का बयाँ करूँ
ख़ूबी हिलाल-ए-चर्ख़ वहाँ नातमाम है
जब लग है तुझ गली में रक़ीब-ए-सियाह रू
तब लग हमारे हक़ में हर इक सुब्ह शाम है
तनहा न बंद इश्क़ में तेरी हवा 'वली'
ये ज़ुल्फ़-ए-हल्क़ादार दो आलम का दाम है