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उस समय / प्रेरणा सारवान
Kavita Kosh से
शीतल पड़ जाए जब
मेरे घावों की धरती
सूख जाएँ जब
आशाओं की कलियाँ
झुलसी हुई घास को
चीरती हुई
निकल जाएँ जब
मेरी असफलताओं की
कटीली झाड़ियाँ
तड़कने लगें जब
आँसुओं से सूखी
मेरी आँखों की सीपियाँ
तुम सर्दी की
किसी रात
बरस पड़ना
एक भटके हुए
बादल की तरह
हृदय की आग में तपती
मेरी ठंडी पीड़ाओं पर।