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उस सिम्त मुझ को यार ने जाने नहीं दिया / मुनीर नियाज़ी
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उस सिम्त<ref>ओर,तरफ़
</ref> मुझ को यार ने जाने नहीं दिया
एक और शहर-ए-यार में आने नहीं दिया
कुछ और वक़्त चाहते थे कि सोचें तेरे लिये, 
तूने वो वक़्त हम को ज़माने! नहीं दिया 
मंज़िल है इस महक की कहाँ किस चमन में है, 
इस का पता सफ़र में हवा ने नहीं दिया 
रोका अना ने काविश-ए-बेसूद से मुझे, 
उस बुत को अपना हाल सुनाने नहीं दिया
है जिस के बाद अहद-ए-ज़वाल-आश्ना "मुनीर", 
इतना कमाल हम को ख़ुदा ने नहीं दिया
शब्दार्थ
<references/> 
	
	

