भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उस स्त्री का प्रेम / मंगलेश डबराल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह स्त्री पता नहीं कहाँ होगी
जिसने मुझसे कहा था —
वे तमाम स्त्रियाँ जो कभी तुम्हें प्यार करेंगी
मेरे भीतर से निकल कर आई होंगी
और तुम जो प्रेम मुझसे करोगे
उसे उन तमाम स्त्रियों से कर रहे होगे
और तुम उनसे जो प्रेम करोगे
उसे तुम मुझसे कर रहे होगे

यह जानना कठिन है कि वह स्त्री कहाँ होगी
जो अपना सारा प्रेम मेरे भीतर छोड़कर
अकेली चली गई
और यह भ्रम बना रहा कि वह कहीं आसपास होगी
और कई बार उसके आने की आवाज़ आती थी
हवा उसके स्पन्दनों से भरी होती थी
उसके स्पर्श उड़ते हुए आते थे
चलते-चलते अचानक उसकी आत्मा दिख जाती थी
उतरते हुए अन्धेरे में खिले हुए फूल की तरह

बाद में जिन स्त्रियों से मुलाक़ात हुई
उन्होंने मुझसे प्रेम नहीं किया
शायद मुझे उसके योग्य नहीं समझा
मैंने देखा, वे उस पहली स्त्री को याद करती थीं
उसी की आहट सुनती थीं
उसी के स्पन्दनों से भरी हुई होती थीं
उसी के स्पर्शों को पहने रहती थीं
उसी को देखती रहती थीं
अन्धेरे में खिले हुए फूल की तरह ।