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उस स्पर्श से लिपटकर / कविता भट्ट

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 कसमसाकर सो जाना
        उस स्पर्श से लिपटकर।
धीरे से कुछ कह जाना
       वो धड़कनों में सिमटकर।
हर अनुभव अनुपम था-
           हर उपमा भी निराली।
प्रेयसी की आँखों को संज्ञा
           ब्रह्माण्ड की; दे डाली।
प्रेम क्या है- नहीं पता
           किन्तु प्रश्न गम्भीर है।
प्रियतमा की आँखों में-
           ब्रम्हाण्ड है या नीर है?
प्रेमी आँखों से न उबर सका
       प्रेयसी ब्रह्माण्ड में ठहरी है।
प्रेम तटों -सा चुप है खड़ा
       समय की नदी भी गहरी है।