भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उस स्पर्श से लिपटकर / कविता भट्ट
Kavita Kosh से
कसमसाकर सो जाना
उस स्पर्श से लिपटकर।
धीरे से कुछ कह जाना
वो धड़कनों में सिमटकर।
हर अनुभव अनुपम था-
हर उपमा भी निराली।
प्रेयसी की आँखों को संज्ञा
ब्रह्माण्ड की; दे डाली।
प्रेम क्या है- नहीं पता
किन्तु प्रश्न गम्भीर है।
प्रियतमा की आँखों में-
ब्रम्हाण्ड है या नीर है?
प्रेमी आँखों से न उबर सका
प्रेयसी ब्रह्माण्ड में ठहरी है।
प्रेम तटों -सा चुप है खड़ा
समय की नदी भी गहरी है।