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उ जे पत्तल परसले परास के / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

उ जे पत्तल<ref>पत्ता, भोज के समय पत्ते पर खिलाया जाता है</ref> परसले परास<ref>पलास</ref> के, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़आ सब जेवन<ref>भोजन करने</ref> आइ के,
गुंड़ा सब जेंवन आइ के,
चलिका<ref>छोटे-छोटे लड़के</ref> सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥1॥
उ जे भात परोसले बूक<ref>अंजलि में भरकर</ref> से, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़वा जेंवन आइ के,
गुंडा सब जेंवन आइ के,
चलिका सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥2॥
उ जे दाल परोसले ढार<ref>ढालकर, धार गिराकर</ref> से, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़वा जेंवन आइ के,
गुंडा सब जेंवन आइ के,
चलिका सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥3॥
उ जे घीउ परोसले ढार से, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़वा जेंवन आइ के,
गुंडा सब जेंवन आइ के,
चलिका सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥4॥
उ जे दही परोसले छेव<ref>जमे हुए दही से एक बार की काटी हुई परत</ref> से, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़वा जेंवन आइ के,
गुंडा सब जेंवन आइ के,
चलिका सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥5॥
उ जे चिन्नी<ref>चीनी</ref> परोसले मुट्ठी से, मोहन के मन भावे हो।
राधे जेंवनार बनाइ के,
रूकमिनी परसाद बनाइ के,
भँडु़वा जेंवन आइ के,
गुंडा सब जेंवन आइ के,
चलिका सब परोसन आइ के,
सखी सब मंगल गाइ के॥6॥

शब्दार्थ
<references/>