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उ रात / माधुरी जायसवाल
Kavita Kosh से
उ एक रात कत्तेॅ भयानक रात छेलै!
सौंसे रात हम्में लड़तेॅ रहलाँ
आरो रात-रात भाग्य हमरा सें लड़तेॅ रहलै।
हमरा पर बिजली टूटतेॅ रहलै।
कहर बजड़तेॅ रहलै।
हम्में दबतेॅ रहलाँ, वें दवैतेॅ रहलै।
हमरो भाग्य हमरा ठगतेॅ गेलै
आरो हम्में ठगैतेॅ गेलां।
एक जल्लाद हमरोॅ अरमान के खून करतेॅ रहलै।
हम्में निरीह, मूक अवाक बनलोॅ रहलाँ।
की-की नै जुल्म भेलै
मतरकि हमरोॅ आवाज ईश ताँय नै पहुँचले।
हमरोॅ आखरी आवाज आरो इच्छा।
डूबतेॅ चल्लोॅ गेलै।
यहाँ तक कि एक भयानक समुन्दर मंे डूबी गेलाँ।
उ रात केन्होॅ भयानक रात छेलै!
एक जल्लादी रात!