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ऊँचे होने का नाटक / गुँजन श्रीवास्तव

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पैसों को गिनता हुआ आदमी
नहीं सोचता :

उसके हाथों में आने से पहले वे
क्षत्रिय के हाथों में थे
या किसी शूद्र के !

न ही वो
पूछता है
एक वेश्या से
उसे भोगने से पहले उसकी ज़ात !

आदमी ऊँचे होने का नाटक करता है
सभी के बीच

तन्हाई में वो जानता है
अपनी असली औकात !