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ऊँट / सुधा चौहान
Kavita Kosh से
रोज़ सवेरे कितने ऊँट,
पीठ लाद ढेरांे तरबूज़।
धीरे-धीरे कहाँ चले,
जब पहुँचेंगे पेड़ तले-
गर्दन ऊँची कर खाएँगे,
कड़वी नीम चबा जाएँगे।
मालिक हाँकेगा जब उनको
बल-बल, बल-बल, गुस्साएँगे!