भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊँ ते समदी आयो देड़ दमड़ी को / पँवारी
Kavita Kosh से
पँवारी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
ऊँ ते समदी आयो देड़ दमड़ी को
फुटी कौड़ी को।।
हमरो पलंग बन्यो हाय पाँ रूपया को
तोनऽ तड़प लायो देड़ दमड़ी को
फुटी कौड़ी को।।
हमरो पलंग बन्यो हाय पाँ रूपया को
तोनऽ तड़प लायो देड़ दमड़ी को
फुटी कौड़ी को।।
हमरो पलंग बन्यो हय पाँच रूपया को।।