भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊंदर थाणेदार / शिवराज भारतीय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लाल टोपी, काळो चश्मो,
पै‘र पजामो झालरदार
हाथ में डंडो, मुंह में सीटी,
ऊंदर बणग्यो थाणेदार।

मूंछ पलारी, टाई सुंवारी
बांकी-बांकी चाल्यो चाल।
गुवाड़ी में मारी दाकळ,
टाबर होग्या आकळ-बाकळ,
ऊंदरड़ी फुलाया गाल।
बिल्ली नै सुधारूंलो,
गुंडा नै सुंवारूंलो,
पूछूंलो म्है कई सुवाल
बिल रै सामी बिल्ली आई,
ऊंदरियै री शामत आई,
छयांया-म्यांयां सारा सुवाल।