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ऊचा ऊचा परबत तहि बसहू सबरी बाली / शवरपा
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ऊचा ऊचा परबत तहि बसहू सबरी बाली।
मोरंगि पिच्छ परिहिण शबरी जीवत गंजरी माली॥
उमत शबरो पागल शबरो माकर गुली गुहाड।
तोहारि पिअ धरिणी नामे सहज सुन्दरी॥
नाना तरूवर मोंउलिल रे गणअत लागें लिडाली।
एकेलि सबरी ए वण हिंडइ कर्ण कुंडल वज्रधारी॥
तिअ धाउ खाट पडिला सबेरा महासुहे सेज छाइली।
सबर भुजंग नैरामणिदारी पेक्खराति पोहाइली॥
चिऊ तॉबोला महासुहे कापुर खाई।
सुन नैरामणि कणठे लइआ महासुहे राति पोहाई॥
गुरू वाक पुंजिआ धनु निअ मण वाणे।
एके स्वरसंधाने विन्धई परम निवाणे॥
उमत सवेरा गुरूआ रोषे गिरिवर सिहरे संधी।
मइसन्ते सबरी लोडिब कइसे॥
स्रोत:
- "अंगिका भाषा और साहित्य" — बिहार राष्ट्रभाषा परिषद
- "हिंदी काव्य धारा" — महापंडित राहुल सांस्कृत्यायन