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ऊजर धवल पाल में / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’
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ऊजर धवल पाल में
मंद मधुर हवा
लाग रहल बा
नइखीं देखले रे भाई
कबहीं नइखीं देखले
अइसन नाव के बहल
कबहीं नइखीं देखले।
कवना समुंदर पार से
कवन देश के धन
कतना दूर से बटोर के
ले आ रहल बा ई नाव
कुछ नइखीं जानत रे भाई
कुछ नइखीं जानत।
हमरो मन करऽता
चल देवे के
नाव पर चढ़ के
चल देवे के।
आपन सब इच्छा
आपन सब संपदा
समुंदर का एही किनारा
फेंक के
हमरो मन करऽता
चल देवे के।
पीछे तरफ
झिहिर-झिहिर
बूनी झर रहल बा
आगे तरफ
मेघन के फाटल दरार से
मुँह पर पड़ रहल बा
लाल किरिन के ललाई
अरे कांतारी
तूं के हउवऽ
केकरा हँसी-रोआई के
धन हउवऽ तूं?
हमार मन
आज एही ऊहापोह में पड़ल बा
कि आज तूं
कवना सुर में
अपना बाजा बन्हबऽ
कौना सुर में तार कसबऽ
कौना सुर में वंशी बजइबऽ
कौन गीत गइबऽ
कौन मंत्र फूंकबऽ