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ऊधो पूत मवेशी निकला / आनन्दी सहाय शुक्ल

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ऊधो पूत मवेशी निकला ।
श्यामलकाठी वर्णशंकरी पिंगलकेशी निकला ।।

तोड़ गुरुत्वाकर्षण सारे
शून्य कक्ष में उछला
माटी से सम्पृक्त नहीं है
रद्द कर चुका पिछला
अर्थहीन है कजरी विरहा
आल्हा गायक पगला
तुलसी सूर कबीरा मीरा

कौन खेत की मूली
आयातित दर्पण ही देखें
दृग में सरसों फूली
देख घुमड़ते बादल इसके
भीतर यक्ष न जगता
लहराती फ़सलों में नद-सा
रंच न वक्ष उमगता

संस्कृति मूत्र विसर्जन वाली
उठी श्वानवत टांगें
बीच सड़क पर नंगा नाचे
पितर क्षमा हैं माँगे
अँग्रेज़ी ध्वनियों पर इसका
रोम-रोम है मचला
लज्जित कोख, छुपाती मुखड़ा अंक ग्लानि से पिघला ।।