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ऊधो माटी नभ तन हेरे / आनन्दी सहाय शुक्ल
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ऊधो माटी नभ तन हेरे ।।
बादल के वितरण में गड़बड़ चातक चौमुख टेरे ।।
घटाटोप मण्डराते घिरते
गरजें बजें दमामा
सूखे सावन जलते भादों
झूठमूठ हंगामा
बिजली तड़पे लपके टूटे
झोपड़-पट्टी दहले
तिनके उड़ते भू से क्षिति तक
कुटिल बवण्डर टहले
आश्वासन के बगुले उजले बूँद न फटके नेरे ।।
नहरों का जल काट-काट कर
पी जाती है लाठी
बन्दूकों की नली गढ़ रही
ऊँची-नीची काठी
हाथ याचना में उठते, या
रहते तन पर लटके
दूबर एततार साँसों का
प्यासे हंसा अटके
सीने पर सिल लदी सब्र की अनमिट अंक उकेरे ।।