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ऊधौ यहै सूधौ सौ संदेश कहि दीजौ एक / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

ऊधौ यहै सूधौ सौ संदेश कहि दीजौ एक
जानति अनेक न विवेक ब्रज-बारी हैं ।
कहै रतनाकर असीम रावरी तौ क्षमा
क्षमता कहाँ लौं अपराध की हमारी हैं ॥
दीजै और ताडन सबै जो मन भावै पर
कीजै न दरस-रस बंचित बिचारी हैं ।
भली हैं बुरी हैं और सलज्ज निरलज्ज हू हैं
को कहै सौ हैं पै परिचारिका तिहारी हैं ॥96॥