भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ऊपर ऊपर / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
ऊपर ऊपर
- कली कली जब
काल छली चुन लेगा
- तब इस भू पर
मूल मध्य से
- वंश कली का फिर उपजेगा,
दल के दल केशर-पराग भर,
मुख-रस से भू-रज-विराग हर,
गंध-दान कर प्रवाहमान को
रूप-दान कर नवविहान को
काल कली के वृन्त-वृन्त पर
- सुमन सहर्ष सदल विकसेगा ।