भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊपर ऊपर / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊपर ऊपर

कली कली जब

काल छली चुन लेगा

तब इस भू पर

मूल मध्य से

वंश कली का फिर उपजेगा,

दल के दल केशर-पराग भर,

मुख-रस से भू-रज-विराग हर,

गंध-दान कर प्रवाहमान को

रूप-दान कर नवविहान को

काल कली के वृन्त-वृन्त पर

सुमन सहर्ष सदल विकसेगा ।