|
ऊपर की तरफ़ श्वेतकेशी आकाश है मेरे
और सामने वन
उघड़ा पड़ा है नग्न
नीचे की तरफ़ जंगली पगडंडी को घेरे
काली कीच
पत्तियों को
कर रही है भग्न
ऊपर हो रहा है ठंड का सर्द शोर
नीचे बिछी है चुप्पी
जीवन के मुरझाने से
पूरे यौवन भर यूँ तो मैं
भटकता रहा घनघोर
बस, ख़ुशी मिली तब मुझे,
किसी विचार के आने से
(1889)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय