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ऊब / श्रीनिवास श्रीकांत
Kavita Kosh से
शाम की सुन्दूरवर्णी झील में
आत्महत्या कर गया है
आज का दिन
कौन जाने किस नगर-पथ से भटककर
आज विधवा रात
मेरे द्वार आयी है
मगर मेरे पास
कुछ भी नहीं
हाँ,कुछ भी नहीं है
महज़ अनगिन सीपियां है
सीपियाँ बीते क्षणों की
बाँझ
आज मैं कुछ भी नहीं
कुछ भी नहीं हूँ
तभी शायद ऊबकर मुझसे
अचानक
मर गया है आज का दिन
शाम की सिन्दूरवर्णी झील में