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ऊर्जा का संचार तुम्हीं से / हरि नारायण सिंह 'हरि'
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ऊर्जा का संचार तुम्हीं से मुझमें होता है।
प्रेयसि! तुमसे मिले बिना दिल मेरा रोता है।
तुम बगिया के फूल, महक तेरी जो आती है,
कर सारे दुख दूर मुझे ताजा कर जाती है,
तब फिर मैं क्या कहूँ कि मुझमें क्या-क्या होता है!
तुम जो ढिग में रहती हो, सारा जग रहता है,
मुझको कुछ भी फिकर नहीं, कोई क्या कहता है,
बीज वही अंखुआता है, जिसको जग बोता है।
मादक तुम हो, तुम समीर के मदिर झकोरे हो,
कंटक से आकीर्ण राह यह तुम तो कोरे हो,
डर जाता जो बीच भंवर में, सबकुछ खोता है।