भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊ जे हावी हो रहलो हे / मथुरा प्रसाद 'नवीन'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊ हमला चुनावी हो रहलो हे
जानऽ हऽ
तों सबे पहचानऽ हऽ
तुतुइया के गाछ
तोहर घर के कनेटा पर हो
जब तक ओकरा नै उकानऽ हऽ
तब तक सड़ैत रहो
मरते दम तक
‘सीताराम सीताराम’ करते रहो
मंदिर में हल्ला हो, हंगामा होऽ
महजिद में ड्रामा होऽ
जहाँ आय तक तों ढूंढै़त रहला हे
हुआं न कृष्ण न सुदाम हो
जात हो
पात हो
एक पर दोसरा के घात हो
ई कुरान
ई गीता
सब के
स्वाद एक हो
चाहे
आम खा इया पपीता