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ऊ बोल चलल / कैलाश चौधरी
Kavita Kosh से
पियास के मारे
सब फूलबन रो रहल हल
मौल रहल हल
मगर कुछ कह नय सकऽ हल
हम भी पढ़े गेली हल
छुट्टी होला पर आइली,
फूलबन के मौलते देख के
हमरो चेहरा सूख गेल
किताब ताखा पर रख देली
आउ ओकरा पटबे लगली
देखते-देखते ऊ बिहंसे लगल
लगइ की ऊ बोल चलल
आउ अपन धमक से
हमरा खुश कर देलक
हमर हिरदा
खुशी मे नाचे लगल ।
ओकरा से हमरा
बचपने से परेम हल
बिना देखले हमरा
रहल नञ जाहल
आज ओकरा जब पियास मिटौली
त ऊ भी चुप नञ रहल
अपन परेम के बखान
मुस्कुरा के कर देलक ।