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ऋतुचक्र / सुधीर सक्सेना
Kavita Kosh से
तुम्हारी देह में
हरी होती है धरती
मेरी देह में
थिरकते हैं मेघ
हम दोनों
एक साथ
करते हैं
पावस की प्रतीक्षा