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ऋतु-प्रकरण / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

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बर्षा -

श्याम-श्यामा - ओढ़ि तडित पीताम्बरी, नव निधि बसि, घन श्याम
जुड़बथि श्यामा अवनिकेँ, प्रेम वारि उद्दाम।।1।।
वर्षा- वधू - घन नितम्ब, निर्झर वसन, स्मित विद्युत, नभ केश
उद कदम्ब, वर्षा वधू सजल सरस वय वेश।।2।।
शर-शय्या - सुर-धनु लय, घन श्याम सङ के शिखण्डि अगुआय?
ग्रीष्म भीष्मकेँ बिन्दुशर सेजहिँ देल सुताय?।।3।।
दुर्दिन - पावस ज्योतिषमे सदा दुर्दिन, दिन भरि साँझ
कृष्ण पक्ष, पुनि यामिनी अमा शेष तिथि बाँझ।।4।।
ऋतु नारी - सुर-धनु नहि भृकुटी कुटिल, मेघ न केश सम्हारि
बिजुरी नहि अंग क छटा, सरस सजल ऋतु नारि।।5।।
मधुशाला - पावस मधुशाला खुजल, नव जल मधु रस पान
मधु बाला चपला चमक, तृन तरु मुख अमलान।।6।।
मादक - घन रस कन पिबितहिँ छनहिँ चातक शिखी चकोर
मीन भेक मातल सकल, जल मादक मद घोर।।7।।
पवनरथी - सुर-धनु तडितक जोड़ि गुन, शर-धारा बरिसाय
पवन - रथी पावस बली तपकेँ देल सुताय।।8।।
पावसी पत्रिका -सरस पावसी पत्रिका सजल विजुरि छवि अग
मुद्रित नव घन सघन पढ़ि रहल गगन ध्वनि संग।।9।।
संगीत समारोह - दादुर भरथि अलाप सुर, झिंगुर झनकि सितार
जलद मृदंगक मंद्र ध्वनि, गीत स्रोत संचार।।10।।

शरद -
लक्ष्मी साक्षात् - गोरि ओढ़ि नीलांबरी, कमल पानि, मुख चान
लक्ष्मी आयलि शरद बनि, भरि अचल धन धान।।1।।
धवला - सरित भरित कैरव, विशद कास हास दिग् देश
गगन चान चकमक, धबल सब तरि शरद क देश।।2।।
शरद शारदा - धवल कमल पद, बीन अलि, पुस्तक काम अशेष
हंस - वाहिनी, चान शुचि शरद शारदा वेष।।3।।
काली नृत्य - शस्य श्यामला, भाल शशि कला, दिगंबरि नित्य
रुद्र रौद्र दिवसक उरस, महारात्रि पद नृत्य।।4।।
रंगमयी - अंजन रंजन नील नभ, दिशि मधुरी दल लाल
पाकल धानेँ पीत थल, सरद रंगमय काल।।5।।
हीरा-लाल - छल कन देबहुमे कृपन, किन्तु दैव अनुकूल
सिङरहार सजि शरद घर, हीरा लाल अमूल।।6।।

हेमन्त -
बुढ़ारी - धुंध-अंध रवि-शशि नयन, कंपित तन, हिम केश
सेबथि अगियासी सतत, बूढ़ि हेमन्ती वेश।।1।।
विपति राति - विपति राति कत टा विकट कनक किरन कन छीन
थर-थर कँपइत कोंढ़ नित हेमन्तक चित खीन।।2।।
पाला मारल ठिठुर पुनि बातेँ कंँपइत गात
यदि न अन्न् रहितय उदर उबरि न करितय प्रात।।3।।

शिशिर -
सासु-वधू - शिशिर सासु मधु वधूकेँ पीत पतनि तन झाँपि
अधर कुसुम मुसुकी निरखि गेलि मनहि मन काँपि।।1।।
साधु - निशाँ सेवि, धूनी रमा, पातक करथि निपात
शिशिर साधु प्रातहि नहा शीत सलिल, शुचि - गात।।2।।

वसन्त -
नव-परिधान - प्रकृति प्रिया तनसँ मलिन वसन पुरान हटाय
लय किसलय परिधान नव, ऋतुपति देल सजाय।।1।।
ऋतु-रमनी - तन लतिका, सुम गुच्छ उर, किसलय अधर प्रमान
अंग चंपके, पिक वचन, मधु ऋतु रमनि निदान।।2।।
सन्त-वसन्त - पर्ण-कुटी वन-उपवनहि तृण तरु लता अनन्त
पिक बानी सुनबथि कथा, ज्ञानी संत वसन्त।।3।।
मद-नृत्य - मधु उन्मद मधुकर निकर, परभृतिका रस - मत्त
मधु कानन - आङनक बिच मचा रहल मद - नृत्त।।4।।
पिकनिक - सजल कमल, तृण तरु सदल कल - कल मधु रस धार
पिक निक हित चलु अलि गली गीत प्रीत सहकार।।5।।
कवि वसन्त - सजि धजि उपवन भूमिका छंद बंध मकरंद
कुसुम कवित रचइछ सरस कवि ऋतुराज वसन्त।।6।।
वन-पत्रिका - कली टिप्पनी, किसलये लेख, कवित कत फूल
छथि वसंत संपादके वन-पत्रिका अतूल।।7।।
महफिल - पिक गायक, वादक मधुप, टिकुली नटी समाज
वन - महफिल जनि’ हित रचित आगत से ऋतुराज।।8।।
चित्रकार - पल्लव राग, पराग पुनि कुसुम कली रस घोरि
रङल चित्रकर मधु विपिन लता तूलिका बोरि।।9।।
निकुंज - कुंज कुंज कलरव पिक क पुंज-पुंज अलि गुंज
मंजु मंजरित माधवी मधु मधु - ऋतु क निकुंज।।10।।
प्रजातन्त्र - मन स्वतन्त्र कत वितत अछि ऋतु-तन्त्रक रसवंत
पुरिबा - पछबा दो - रसी बहय बसात वसन्त।।11।।

ग्रीष्म
शासन दण्ड - मधु विलास रस मत्त जग विपथ न चलओ उदंड
तपी प्रतापी ग्रीष्म कर आतप शासन दंड।।1।।
रुक्षता - एम्हर विलासी मधुक कन ओम्हर पावसी धार
तदपि रुक्षता ग्रीष्म उर अहह!! नियति दुर्वार।।2।।
गाछी - अरुन वरुनि रस आभरनि, चौदिस गोपी आम
परिनत तरुनिक कुंजमे, जंबू श्याम ललाम।।3।।
उदर-ताप - कूप चूप पोखरि झखरि चटा गेल चर चाँच
सर सरिपहु गेल ससरि कहुँ, पड़ि उदरक तप आँच।।4।।