भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऋषियों का देश / मधुसूदन साहा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुबह बाँचे मंत्र
संध्या ऋचाएँ
ऋषियों का देश चलो देख आएँ।
रोज जहाँ बहती है हवा चंदनी
माती में विहंस रही चंद्र की कनी
पक्षी उचारते
श्लोक सहीनताएँ
ऋषियों का देश चलो देख आएँ।
 
जहाँ जमुन काया में गंगा सा मन
अँजुरी भर शब्दों का सहज आचमन
गलियों में हँसती
चपल अप्सराएँ
ऋषियों का देश चलो देख आएँ।

रोज जहाँ लीप जाए धूप देहरी
आँगन-घर दर्पण हो, रूप देहरी
बाट खड़ी जोहें
संदली दिशाएँ
ऋषियों का देश चलों देख आएँ।

जहाँ लोग जननी की आन-बान पर
भिड़ जाते दुश्मन से खेल जान कर
धूल वही लेकर
तिलक हम लगाएँ
ऋषियों का देश चलो देख आएँ।