एकटा इंटरव्यू: नव कनियाँ सँ / नरेश कुमार विकल
नव कनियाँ सोचय हैत सासुर केहेन
नव कनियें कें मुँह सँ सुना दै‘ छी।
छल सेहन्ता हमर आसमाने चढ़ल-
बात तेहन ने पहिने जनाऽ दै‘ छी।
डर पहिने सँ छल लोक केहन हेता ?
नाम जाइते ने जानी ओ की सभ लेता ?
ई सोचैते रखाऽ गेल मंहफा जतय
नाम तकरे छै सासुर बुझाऽ दै’ छी।
टोन कहेने अनोन जेना लौंगी भरल
बात सभटा छलनि आसमाने चढ़ल
नाम सभ कें गिनाबी तँ अहीं कहब
दस लोके मे अहाँ घिनाऽ दै’ छी।
एक खटिया जोकर घर मे हम गेलहुँ
ठीक चाने जकाँ हम उगरास भेलहुँ
आब सासुर ने कहबै जहल छलओ
सभ गोटे कें ई हम जनाऽ दै’ छी।
घोघ भिनसर खसय राति मे बस उठय
भरि दिन चांगुर पर बैसल कोना कें रहय ?
डांड ऐंठल जेना पयर झुन्झुन भरल
मुँह चूरू सन हमरा बनाऽ दै’ छी।
नओ ननदोसिये छला सभ मोंछे वला
आ‘ चउबीसटा देओर हो ककरा भला
गप्प ककरा सँ कोना पड़ैत छल करऽ
सभ जनिते छी तैयो जनाऽ दै’ छी।
रौद सुरूज कें लागल कतेक दिन पर
ठीक तँ नहि कही मुदा नओ दिन पर
बुझू रातिए मे कनिको बसातो भेंटय
एक हमही छी मन कें मनाऽ लै’ छी।
बात आ’ हाथ कें कै’टा सुइयो भेंटय
राहु भरि दिन जेना चान धयने रहय
नोर सँ अछि भरल ई हमर जिन्दगी
कियो सासुर ने जाएब हम जना दै‘ छी।