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एकबेर फेरू नजरि शरण हम आयल छी / बाबा बैद्यनाथ झा
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एकबेर फेरू नजरि शरण हम आयल छी
सौंसे संसारसँ हम सदति सतायल छी
सभ दिन मोह-निशामे हम सूतल रहलौँ
व्यर्थ-जंजालमे हम जनम गमायल छी
सुखक संगी-सखा कियो ने संग देलक
टूटल पात जकाँ हम उड़िआयल छी
कामना-जालमे सभदिन उलझल रहलौँ
पापक बोझसँ हम कतेक दबायल छी
कर जोड़ि विनती अछि आबो तँ माफ करू
दिअऽ आशीष अपन कथी ले नुकायल छी