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एके गो मटिया के दूइ गो खेलवना / महेन्द्र मिश्र

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एके गो मटिया के दूइ गो खेलवना,
मोर सँवरिया रे, गढ़ेवाला एके गो कोंहार।
कवनों खेलवना के रंग गोरे-गोरे,
मोर सँवरिया रे कवनो खेलवना लहरदार।
कबनो खेलवना के अटपट गढ़नियाँ,
मोर सँवरिया रे आखिर माटी हो जइहें बेकार।
कहत महेन्द्र पिया अबहीं से चेतऽ,
मोर सँवरिया रे मानुस तन ना मिली बारम्बार।