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एक्को पल, सौ साल लगै छै / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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एक्को पल, सौ साल लगै छै,
तोरोॅ बिन, ई काल लगै छै।

नै फूलोॅ में रंग बुझावै
नै गंधोॅ के ज्ञान हुवै छै,
तखनी रात अन्हरिया कपसै
जखनी नभ में चान हुवै छै;
की बतलैयौं आबेॅ तोरा
केहनोॅ हमरोॅ हाल लगै छै।

सुर में एक्को गीत नै लागै
वीण-पखावज कोय नै लय में,
ऊँगली उठै छै जे भी, काँपै
जानेॅ कोन व्यथा में, भय में;
जे संगीत बजै छै ओकरोॅ
कटलोॅ-कटलोॅ ताल लगै छै।

नै आँखी केॅ मोहै चन्दा
नै कानोॅ केॅ सुरे लुभावै,
नै जीहा केॅ स्वाद बुझावै
चन्दन गंध नै मन केॅ मोहै
गल्ला में फूलो के माला
लपटैलोॅ ज्यों व्याल लगै छै।