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एक्को पल आपनोॅ मै / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो

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काल यानी समय: अनन्त आरो लगातार छै!
कल्प-जुग-सदी-साल महीना-दिन-घड़ी-पोॅल
जेना तारा-नक्षत्र-ग्रह-उपग्रह में बँटलोॅ अंतरिक्ष!
ग्रह, जेना पृथ्वी, नदी-समुद्र आरो धरती में बँटल
धरती फेरू महादेश-देश आरो कियारी में बँटलोॅ!
बाँटै के आरो बाँटी केॅ अधिकार करै के सुभाव
आदमी के जन्मजात छै!
मजकि घड़ी-पोॅल केकरो नै
(कुछु-कुछु ओकरे जें साथ दियेॅ)
केन्हें कि काल यानी समय
अनन्त आरो लगातार छैः थिर होला पर भी चलायमान।

सौंसे जिनगी खेपी केॅ जबेॅ नगीच होय छै साँझ
उल्टी केॅ देखला पर लागै छै एक्को पल आपनोॅ नै!
संगी सें साथी सें भाय सें करलोॅ सब घात
पुंज रं धरलोॅ काँहूँ कोय कोना पर झलकै छै
मलका रं मलकै छै
छाती जेना ओकरोॅ भारोॅ सें रही-रही दलकै छै!
ऊ चुभन ऊ शूल
किरपिनी के धनोॅ रं गाड़लोॅ बेकाम
बिना सूदी के बढ़ै बाला
नगद ठनठनियाँ रूपैया के दाम!

आबै फेरू याद रोपलोॅ बिरबा,
जतनी सें पटैलोॅ जोॅड़
कोड़ी केॅ उघारलोॅ माँटी के गन्ध!
जेकरा डाँटोॅ सें, पत्ता सें, रेसा सें
पीबी केॅ ढकमोरै फूल!
खींचै राही बटोही के ध्यान,
छाँही में सुस्ताय लेॅ भेजी केॅ नेतोॅ
माँगी लै ओकरा सें ओकरोॅ थकान!

पछिया के कान्हा पर चढ़ी केॅ दूरोॅ सें
आबै नगीच जबेॅ ओकरोॅ गन्ध
लागै जेना ठाम्हैं ढकमोरै हौ फूल
‘वहेॅ पँल आपनोॅ’
-सोचै बिसारी सब शूल-
‘मजकि ओकरो साथ अलगछुवे रहलै!’
एक पलोॅ केॅ भुलाय बास्ते दोसरा के प्रयोग
जिनगी के यहेॅ उपयोग!