एक्यूपंक्चर / प्रवीण काश्यप
हम निसाँ में धुत भऽ कऽ घुमै छी यत्र-तत्र
दीर्घकालीन एकांतक बाद हमरो चाही मनुक्ख!
मनुखक जीवन, जाहि में छैक प्रेम आ प्रेमक कष्ट
आसक्ति त्यागने अशक्त भेल तन, नपुंसक मन!
आब हम छी मात्र प्रेमी, तपस्वी नहि!
प्रेमक प्रभाव सँ दग्ध करब अपन तपोबल!
हमरा चाही निसाँ
किछु पल अपना आपकें
अपन बिमारी कें बिसरबा लेल।
एहि बिमारी के आब नहि कोनो उपाय
हे भगवान आब तोरे असरा!
केंसर, एड्स सँ होइत अछि मनुक्ख कमजोर
किछु दिनक लेल क्षीण-क्षीणतर होइत शरीर
आ फेर कष्ट सँ मुक्ति, मृत्यु
मुदा हमरा संग अछि हमर सभ क्षणक मृत्यु!
ने हमरा नियंत्रण अछि अपन रोग पर
ने क्षण-क्षण होइत मृत्यु पर
तें गोहरा रहल छी भगवती कें
हे माँ आब तोहरे असरा!
हमरा बुझल अछि
हुनकहुँ नहि छन्हि नियंत्रण
अपन परिस्थिति पर!
मुदा ताहि सँ हमर रोग
की भऽ सकैछ ठीक ?
की भऽ सकैत छी लोभ,
अपन रोगक उपाय लेल, निदान लेल
किछु पल रोग कें बिसरऽ लेल!
मुदा नहि अछि नियंत्रण हमरा रोग पर
हुनका अपन परिस्थिति पर
हमरा दुहू कें नहि अछि नियंत्रण
एक दोसरा पर!
नियंत्रण बनेबाक प्रयास में
भऽ जाइत अछि मथफोड़ी
क्रोध, आवेश, प्रेम, प्रणय
सभ एक्के में मिझरा जाइत अछि;
आ बढ़िये जाइत अछि
हमर रोग, हमर क्षण-क्षणक मृत्यु!
हमर लोभ खा लैत अछि
हुनकहु किछु कालक विश्राम!
टुटि जाइत अछि नियंत्रण,
दुहूक अपन-अपन स्थिति पर सँ।
तें हमरा चाही निसाँ
किछु पल अपन मृत्यु कें
अपन मजबूरी कें बिसरबा लेल निसाँ।
एकटा कष्ट सँ मुक्तिक लेल
चाही दोसर कष्ट, तेसर कष्ट
हम भऽ गेल छी नसेरी
निसाँ चाही, कष्ट चाही, एक्युपंक्चर चाही
हमरा चाही असरा
निसाँक भवगतीक।
हे माँ आब तोहरे असरा