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एक-एक कर के / रवीन्द्रनाथ ठाकुर / सिपाही सिंह ‘श्रीमंत’

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एक-एक करके
अपना सितार के
पुरान तार उतार दे।
पुरान तार उतार के
नया तार चढ़ा ले।
चढ़ा ले नया तार चढ़ा ले
अपना सितार पर
नया तार चढ़ा ले।
दिन के सभा उठ गइल
दिन के मेला टूट गइल।
साँझ के सभा बइठी अब
साँझ के सभा बइठी।
तोरा आखिरी स्वर जे बजावे के बा
सेकर बेरा आ गइल।
अब छोड़ के पुरान स्वर
जोड़ कुछ नया।
चढ़ा ले नया तार चढ़ा ले
अपना सितार पर नया तार चढ़ा ले।
खोल दे दरवाजा आपन खोलदे,
ढुके दे नीरवता सातों लोक के।
आज ले जे गीत तें गवले
से अब खतम समझ खतम
ई बात साफ भोर पाल दे
जे जवन बाजा तें बजवले से तो ह।
चढ़ा ले नया तार चढ़ा ले
अपना सितार पर नया तार चढ़ा ले।