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एक अच्छा दिन / महाराज कृष्ण सन्तोषी
Kavita Kosh से
बहुत अच्छा दिन बीता आज
न पढ़ा अखबार
न देखा टेलिविजन ही
सुबह-सुबह ओस की बून्दों में
मैंने देख लिया अपना प्रतिबिम्ब
फिर अच्छा लगा यह सोचना
कि ओस ही है हमारे जीवन की आत्मकथा
बहुत अच्छा दिन बीता आज
न मन्त्र
न ईश्वर
न मित्र याद आए
आज अकेला ही
हरी-हरी घास पर
नँगे पाँच चलते हुए
मैंने पृथ्वी का प्यार नाप लिया
और पेड़ों से लिया मौन
बहुत अच्छा दिन बीता आज
न किसी ने नाम पूछा
न जात
न गाँव
आज ऐसा लगा
दुनिया का सबसे बड़ा अमीर
वही हो सकता है
जो सारी पृथ्वी से कर पाए प्यार
और यह बात
मुझे किसी किताब ने नहीं
हरी घास की एक पत्ती ने समझाई