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एक अजूबा / सूर्यकुमार पांडेय
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मैंने एक अजूबा कल, देखा अपने सपने में,
सौ चूहे खा मस्त-मगन, बिल्ली माला जपने में ।
चींटी के पर उग आए थे, मिली हवा में उड़ती,
मछली देखी मैंने, जो पेड़ों के ऊपर चढ़ती ।
हुआ जुकाम मेंढकी को था, मेंढक गप्प लड़ाता,
चींपो-चींपो गधा सभी को, अपने गीत सुनाता ।
रंगे सियार कई देखे थे, इधर-उधर इतराते,
गीदड़ देखे, जो उलटे भागे शहरों को जाते ।
शेर और बकरी पीते थे, एक घाट पर पानी,
और लोमड़ी के मुँह में अंगूर मिले लासानी ।
ऊँट न जाने किस करवट बैठे, हम जान न पाए,
नींद खुल गई, हम यह सब सपना है, मान न पाए ।