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एक अतिरिक्त छुअन / केतन यादव
Kavita Kosh से
एक छुअन वह
जो तुमने अपनी रखी थी मेरे कंधे पर
एक वह जो तुम्हारे हाथ हटाने के बाद
अबतक छू रही मुझे
एक डर में भीगी हुई ख़ुशी
आशंकाओं के झोंकों से सिकुड़ती
पर यह कँपकपी
भीतर मन में दबा लूँगा
ताकि तुम्हारे हाथों से छनकर आई सिहरन
न छेड़े कोई तार , जिससे
सामने, दृश्य में डूबी, तुम
विलग हो जाओ, अपने आनंद से
वह छुअन, वह प्रेमिल वज्रपात
सह लूँगा मैं फिर से
वह छुअन
जो तुम्हारे पहले मैसेज पर थमी थी
की-पैड के अक्षरों पर धड़कती
वह, जो बहुप्रतीक्षित कॉलबैक
को उठाने पर छू गयी थी
कितनी संभावनाओं को
वह छुअन
जो खयाल में जाने से पहले
और वहाँ से निकलने के बाद भी है
वह अतिरिक्त छुअन
जो तुम्हारी अनगिनत छुअन की
स्मृति में ताज़ा है,
एक अतिरिक्त।