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एक अनुभूति / केशव

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जब से मैंने जाना है प्यार
एक आलोकधुले खालीपन में
खुल गया है द्वार
जहाँ न सुख है
न दुख
होता है सब कुछ
एक लय में
अपने-आप

पँख उगते हैं
उड़ जाता है मन
फूल गँध की तरह
कोई अदृश्य हाथ
बटोरते रहते हैं
सूरज की खिलखिलाहट
बदलते रहते हैं दृश्य
दुनिया के पर्दे पर

पर खालीपन में
चलती रहती है अकेली
एक राह
अकेलेपन से मुक्त
प्यार के ओर
खुले घर की ओर.