एक अभिभाषक के बारे में / पवन करण
‘एक हाथ मे आदमी का कटा हुआ सिर
और दूसरे में नोटो का भरा हुआ झोला
वकील साहब को लेकर चले आइए आप, क्या मज़ाल
जो फिर कानून के हाथों आपका बाल बाँका भी हो जाए
वकील साहब का इतना नाम यों ही तो नही आखिर
मंत्री-संत्री की तो औकात क्या उनसे मिलने
मुख्यमंत्री तक को लेना पडता है समय
न्यायाधीश के पद को कई दफ़ा मार चुके वे ठोकर
यह उनकी ख्याति है कि अपराधी के दिमाग में
सबसे पहले जो नाम होता है वह उनका होता है
मगर उठाईगीरों के साथ-साथ ख़ासे सूरमा भी
उन्हें अपना केस लडने को तैयार करने से पहले
उनके दफ़्तर की देहरी चढते हुए सौ बार सोचते हैं
कई न्यायाधीश उन्हें काला कोट पहने
जिरह करने आते देख अपने कोर्ट में उनके सम्मान में
उठकर हो जाते है खड़े और उनसे नही करते
बिना ’सर’ कहे बातचीत, कई तो उनके शिष्यों में से
जज बने बैठे है
आख़िर इन नए-नए जजों की
उनके अनुभव और वरिष्ठता के सामने क्या गणना
कई प्रकरणों के फैसले तो वे अपने प्रभाव से ही
इन न्यायाधीशों से अपने पक्ष मे करवा लेते हैं
उन्हें उस अभियुक्त से मिलकर ख़ुशी नही होती
जो रिरियाते हुई कहता है मुझे झूठा फँसाया गया है
वकील साहब मुझे बचाइए मैंने कोई अपराध नही किया
उसे बचाने की तो वकील साहब की इच्छा ही नहीं होती
वकील साहब को तो वह अपराधी पसंद है जो
छाती ठोककर हँसते हुए उनके सामने कहता है
हाँ साहब, अपराध मैंने किया है
अब यह आपके ऊपर है कि आप मुझे किस तरह बचाते हैं
आप तो ये बोलो नोट कितने लगेंगे
आपकी जेबें नोटों की गड्डियों से भरी हों तो भी क्या
यह ज़रूरी नहीं कि एक हवाई-जहाज़ से
दूसरे हवाई-जहाज़, एक शहर से दूसरे शहर
यात्राओं पर रहते वकील साहब आपको घास डाल ही दें
आपके तीसमार खाँ बने रहने के बावजूद ले ही लें, आपका केस
लक्ष्मी की कोई कमी तो बची नहीं उनके पास
वे अपने दफ़्तर के दरवाज़े की तो छोड़िए
घर के रौशनदान से भी बाहर झाँके तो उन्हें वहाँ भी
एक अभियुक्त अपनी पीठ पर नोंटो से भरा झोला टाँगे मिलेगा खड़ा
वह दिन उस न्यायपालिका के लिए बड़ा दिन होता है
जिस दिन वकील साहब जिस शहर मे होते है
जैसे आज वे अपने शहर में ही हैं
अलग-अलग प्रकरणों मे करनी हैं आज उनको बहस
एक प्रकरण में हत्यारे के ख़िलाफ़ चश्मदीद
गवाहों को ही संदेह के घेरे में लाते हुए कर देना है उन्हें
बचकर भागने के लिए मज़बूर
बलात्कार से क्षत-विक्षत एक स्त्री को ही
करना है बदचलन घोषित और
नोंटो की गड्डियों पर नंगे होकर नाचते एक नामचीन को
कानून के फँदे से निष्कलंक निकालकर लाना है बाहर
और हर शाम की तरह आज शाम भी
लगभग थूकने के अन्दाज़ मे अपने घर की
अलमारी मे पटकते हुए नोंटो की गड्डियाँ
हम-प्याला साथिय़ों के बीच मारते हुए आँख कहना है
न्याय को उँगलियों पर नचाना चाहते हो
तो उस पर संदेह पैदा करते हुए
उसे कठघरे मे खड़ा करना सीखो ।